बस्तर दशहरा पर्व की हुई शुरुआत,पाटजात्रा का विधान पूरा किया

 

बस्तर दशहरा पर्व की हुई शुरुआत,पाटजात्रा का विधान पूरा किया


जगदलपुर/ बस्तर में हर वर्ष की तरह इस साल भी दशहरे का आगाज आज हरेली अमावस को पाट जात्रा की रस्म के साथ हुआ। प्रथम रस्म के तौर पर परंपरानुसार राजमहल से भेजे गए पूजन सामाग्री से पाटजात्रा का विधान पूरा किया गया। रथ निर्माण की पहली लकड़ी को ठुरलु खोटला कहा जाता है। दशहरे के लिए तैयार किए जाने वाले रथ की पहली लकड़ी दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलौरी से लाई जाती है, जहाँ कारीगरों एवं ग्रामीणों के द्वारा मांझी, चालाकी, मेंबरीन व अन्य सदस्यों की मौजूदगी में पूजा विधान सम्पन्न किया जाता है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में इसकी शुरुआत हरेली पर्व पर पाट जात्रा रस्म के साथ हो गई है। दंतेश्वरी मंदिर के सामने सोमवार को ग्राम बिलौरी से पहुंची ठुरलु खोटला का विधि विधान से पूजा की गई। दुनिया में सबसे लंबे अवधि तक मनाया जाने वाला बस्तर दशहरा इस बार 75 दिन का नहीं, बल्कि दो महीने का अधिमास होने के कारण 107 दिन में संपन्न होगा। खास बात यह है कि इस दशहरे में न तो भगवान राम होते हैं और न ही रावण का वध होता है। बल्कि यह पर्व देवी मां को समर्पित है। बस्तर दशहरा के दौरान रथ यात्रा निकलती है। इन रथों पर देवी मां सवार होती हैं। रथ निर्माण की पहली लकड़ी को स्थानीय बोली में ठुरलु खोटला और टीका पाटा कहते हैं। हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी (ठुरलू खोटला) की पूजा की जाती है। जिसे पाट जात्रा रस्म कहते हैं। इसके बाद बिरिंगपाल गांव के ग्रामीण सीरासार भवन में सरई पेड़ की टहनी को स्थापित कर डेरीगड़ाई की रस्म पूरी करते हैं। इसके साथ ही रथ निर्माण के लिए जंगलों से लकड़ी शहर पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

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