फिर से आरक्षण समीक्षा समिति की आवश्यकता क्यों ? :- अधिवक्ता शत्रुहन सिंह साहू

 


फिर से आरक्षण समीक्षा समिति की आवश्यकता क्यों ? :- अधिवक्ता शत्रुहन सिंह साहू

समिति का गठन खानापूर्ति के अलावा कुछ नही - टिकेश्वर साहू

 

उत्तम साहू, दबंग छत्तीसगढ़िया न्यूज 

धमतरी/केन्द्र मे तीसरी बार भाजपा की सत्ता आते ही एक बार फिर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के द्वारा राज्य की आरक्षण प्रावधानों की समीक्षा के लिए कृषि मंत्री श्री राम विचार नेताम के अध्यक्षता में तीन एस टी वर्ग से, एक एस सी और दो ओबीसी वर्ग के साथ में सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और आदिम जाति कल्याण विभाग के सचिव सहित कुल 8 सदस्य वाली स्थायी समिति का गठन किया गया है जबकि इससे पूर्व काग्रेस सरकार द्वारा सभी दलों की सहमति से लाई गई आरक्षण संसाधन विधेयक 2022 आज भी राजयपाल के कार्यालय में अटकी हुई है जिसे लागू करवाने के बजाय पुनः कमेटी गठित करना आरक्षण विषय को लटकाने के अलावा और कुछ भी नहीं है इस विषय पर ओबीसी संयोजन समिति ने दिनांक 13 जून संध्या में प्रदेश स्तरीय गूगल मीटिंग कर गंभीर चिंतन मनन उपरान्त समिति के स्थाई सदस्यों से मिलकर सामाजिक न्याय के मसौदे और समिति के उद्देश्यों का एक प्रस्ताव सौंपने का निर्णय लिया ताकि आरक्षण के समस्याओं के साथ ही नई भर्ती, पदोन्नति, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के खिलाफ कार्यवाही, ओबीसी छात्र-छात्राओं को मिलने वाली छात्रवृत्ति में समानता और खासकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 27% की आरक्षण को तत्काल प्रभाव से लागू करते हुए आरक्षण संशोधन विधायक 2022 पर राज्यपाल का हस्ताक्षर करवा कर छत्तीसगढ़ में लागू करवाने की रणनीति पर काम किया जा सके 

समिति के संस्थापक एडवोकेट शत्रुहन सिंह साहू ने बताया कि चाहे किसी भी दल की सरकार हो वे ओबीसी समाज के संवैधानिक अधिकार देने की बात पर केवल आयोग बनाकर खाना पूर्ति करने का काम करते आ रहे है अब तक कई आयोग का गठन किया गया किंतु उन अयोगी की सिफारिश को लागू करने के बजाय और नहीं आयोग का गठन सरकार की मनसा पर प्रश्न चिन्ह लगता है ओबीसी समाज के हित के लिए बनाई गई राष्ट्रीय मंडल आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के 44 साल बाद भी लागू नहीं होना और केवल नई-नई आयोग बनाकर आरक्षण नीति को लटकाने का प्रयास किया जाना देश के विकास में बाधा पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं है उन्होंने आगे कहा कि विपक्ष में रहते हुए जो ओबीसी के मुद्दे को मुखर होकर अपना राजनीतिक अस्त्र के रूप में उपयोग करते हैं वही सत्ता में आने के बाद आयोग बनाकर ओबीसी के मुद्दे को लटका देते हैं यह दुर्भाग्य ही है की आजादी के 75 साल के बाद भी देश के बहुसंख्यक ओबीसी समाज को अपने हक अधिकार के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता हो रही है छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 24 साल के बाद भी छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार द्वारा पारित 27% भागीदारी ओबीसी समाज को देने के बजाय केवल समीक्षा के लिए समिति गठित करना दुर्भाग्य जनक है जबकि ओबीसी संयोजन समिति के द्वारा विगत कई वर्षों से लगातार सामाजिक न्याय की स्थापना की मांग किया जाता रहा है |

संगठन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष श्री टिकेश्वर साहू जी ने प्रेस को बताया की सत्तारूढ़ पार्टी के साथ में विपक्ष भी इस मुद्दे पर केवल लीपापोती करने का प्रयास कर रही है।वह स्थिति अलग थी जब हम मध्य प्रदेश शासन में शामिल थे 16 नवंबर 1992 से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया गया है lलेकिन सरकारों की ऐसी क्या मंशा है की बहुसंख्यक उत्पादक वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए उनका ध्यान जाता ही नहीं है और आज पीछे दरवाजे से अनचाहे तरीके से सवर्णों की भर्ती किया जा रहा है मीटिंग में सभी सदस्यों ने सहमति बनाए और आरक्षण समीक्षा समिति के सदस्यों से मुलाकात करके अपनी प्रस्तावित मांगों को पूरा करने के लिए बात रखेंगे।

                      

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