हाईकोर्ट का बड़ा फैसला,बीईओ को कलेक्टर नहीं कर सकते सस्पेंड,कलेक्टर का आदेश किया निरस्त
बिलासपुर/ छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग में चल रहे युक्तियुक्तकरण के बीच एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (BEO) को निलंबित करने का अधिकार कलेक्टर के पास नहीं है। हाईकोर्ट ने जगदलपुर कलेक्टर द्वारा जारी किए गए बीईओ के निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया है।
मानसिंह भारद्वाज जगदलपुर जिले के जगदलपुर विकासखंड में बीईओ के पद पर पदस्थ थे, जिनका मूल पद प्राचार्य है। उन्हें युक्तियुक्तकरण के संबंध में गलत जानकारी उच्च कार्यालय को भेजने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। बस्तर संभाग के कमिश्नर ने उनके निलंबन की कार्रवाई करने का आदेश प्रभारी कलेक्टर जगदलपुर को दिया था।
मानसिंह भारद्वाज ने अपने निलंबन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने बताया कि वे 2 जून से 6 जून 2025 तक अपने भतीजे की शादी में शामिल होने मध्यप्रदेश के सिवनी गए थे। उन्होंने इसके लिए पहले से छुट्टी ले रखी थी, लेकिन 4 जून को उनकी छुट्टी अचानक रद्द कर दी गई और 5 जून को उन्हें उपस्थित होने का आदेश जारी हुआ। वे लौटते, इससे पहले ही 6 जून को उनका निलंबन आदेश जारी कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा कि निलंबन से पहले न तो उन्हें कोई कारण बताओ नोटिस दिया गया और न ही व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर मिला, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। पहले सिंगल बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने डिवीजन बेंच में अपील दायर की।
हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी: ‘कलेक्टर सक्षम प्राधिकारी नहीं’
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कलेक्टर न तो बीईओ के नियुक्ति प्राधिकारी हैं और न ही उनके पास निलंबन का वैधानिक अधिकार है। यह अधिकार संभागीय आयुक्त या स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को प्राप्त है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि निलंबन आदेश पर कलेक्टर के हस्ताक्षर नहीं थे, बल्कि किसी अधीनस्थ अधिकारी ने दस्तखत किए थे, जो नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। दरअसल, जब निलंबन आदेश जारी हुआ उस वक्त जगदलपुर कलेक्टर छुट्टी पर थे और उनकी जगह जिला पंचायत सीईओ कलेक्टर के प्रभार में थे, जिसके चलते सीईओ ने प्रभारी कलेक्टर के तौर पर निलंबन आदेश पर हस्ताक्षर किए थे।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “जब निलंबन जैसी कठोर कार्रवाई की जाए, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राधिकारी विधि द्वारा प्रदत्त अधिकार का पालन करे। अन्यथा यह आदेश असंवैधानिक और शून्य माना जाएगा।” हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि संभागीय आयुक्त चाहें तो नियमों के तहत दो सप्ताह के भीतर उचित प्रक्रिया अपनाते हुए कार्रवाई कर सकते हैं।

