पत्रकार को सत्तापोषी नहीं जनचेतना का चित्रकार होना चाहिए... उत्तम साहू
अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष लेख
उत्तम साहू/आज पत्रकारिता सबसे बड़े जोखिम का पेशा है। पत्रकार यदि झूठ लिखे तो जनता के चित्त से उतर जाता है, और जब सच लिखना चाहे तो अदृश्य ताकतें मार देती हैं
पत्रकार को सत्तापोषी नहीं जनचेतना का चित्रकार होना चाहिए–घटनाओं का यथा तथ्य प्रस्तोता ही नहीं उसके कारक तत्वों का भी जानकार, दूरद्रष्टा, अतीत-वर्तमान और भविष्य का अध्येता, पढाकू, साहित्यकार की तरह संवेदनशील और सच्चा शुभचिन्तक उत्पीड़ित समाज का, बेहद ईमानदार, बहिष्कृत-तिरस्कृत और दलित दुनिया की कुचली गयी जिजीविषा को आशा का सम्बल प्रदान करने वाला। एक सत्यान्वेषी पत्रकार सदैव लोकहित का पहरुआ होता है–लोकतंत्र की दबी हुई आवाज़ का नायक, देश और समाज का हितैषी और बिन पारितोषिक-पुरस्कार की प्राप्त्याशा में खटने-खपने वाला कार्यकर्ता। वह महात्मा गाँधी, आम्बेडकर, की विरासत को आगे बढाना चाहता है, पर दुर्मद काली ताकतों से दुर्बल शरीर भला क्या लोहा लेगा? उसके प्राण और स्वजनों की सुरक्षा की भला किसे चिन्ता है?