"कौमी एकता का प्रतीक नगरी का नवदुर्गा एवं विजयदशमी महोत्सव"

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 "कौमी एकता का प्रतीक नगरी का नवदुर्गा एवं विजयदशमी महोत्सव"

नगर में निकाली गई भव्य शोभा यात्रा.. स्थापित होगी माता रानी की प्रतिमा

नगर के ऐतिहासिक सांस्कृतिक मंच नव आनंद कला मंदिर का स्थापना की ऐतिहासिक जानकारी....पढ़ें विस्तार से पूरी खबर 

उत्तम साहू 

नगरी/ कौमी एकता का प्रतीक नगर स्तरीय नवदुर्गा एवं विजयदशमी महोत्सव नव आनंद कला मंदिर के तत्वाधान में प्रति वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है। श्री राम नवयुवक परिषद नगरी के महासचिव नरेश छेदैहा ने बताया कि 03 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहे नवरात्रि महोत्सव नगर में विगत 73 वर्षों से केवल एक ही स्थान पर माता रानी की प्रतिमा स्थापित की जाती है,इस आयोजन के प्रति लोगों के मन में गजब का उत्साह रहता है। इसे सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं, इसे नगरी की कौमी एकता और भाईचारा की मिसाल के रूप में देखा जाता है, इस पर्व का शुभारंभ माता रानी की विशाल शोभा यात्रा के साथ होता है,शोभा यात्रा नगर पंचायत नगरी से कार्यक्रम स्थल गांधी चौक,राजाबाड़ा तक निकाली जाती है। इस अवसर पर नई बस्ती माता सेवा दल नगरी और पुरानी बस्ती माता सेवादल नगरी के भक्तों द्वारा सुर ,ताल ,ढोल ,मंजीरे और करतल ध्वनि के बीच जस गीत के माध्यम से माता रानी की महिमा की अद्भुत रचना की जाती है। शोभा यात्रा में महिलाएं अपने सिर पर कलश धारण कर शोभा यात्रा के साथ चलते हुए है सहभागिता प्रदान करती हैं,


नवरात्रि में 9 दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होता है इस दिन नगर के किसी वार्ड या मोहल्ले में कोई भी सार्वजनिक या व्यक्तिगत कार्यों आयोजन नहीं होता, नवरात्रि के अवसर पर ऐतिहासिक दंतेश्वरी मंदिर के ज्योति कक्ष में भक्तों की मनोकामना हेतु ज्योति प्रज्वलित किए जाते हैं ।नगर पुरोहित द्वारा प्रतिदिन वृहद रुप से माता रानी की पूजा अर्चना की जाती है इस आयोजन में श्री राम नव युवक परिषद की सभी 14 रामायण मंडलियां भाग लेती है, इस आयोजन में व्यवसायी वर्ग कर्मचारी वर्ग, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा पुलिस प्रशासन का महती योगदान रहता है। इस आयोजन का लोग साल भर बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं इस वर्ष नवरात्रि के अद्भुत पल को संजोकर रखने के लिए दो सेल्फी जोन स्थापित किए गए हैं। 




कार्यक्रम स्थल पर सीसी कैमरे लगाए गए हैं। मुख्य मार्ग में जगह जगह स्वागत द्वार बनाए गए हैं।जिसे बिजली की झालरों से जगमगाया गया है।समिति के पदाधिकारियों द्वारा कार्यक्रम की व्यापक तैयारियां की गई है। कार्यक्रम की तैयारी में अध्यक्ष मनोज गुप्ता उपाध्याय होरीलाल पटेल,पुरुषोत्तम निर्मलकर ,हरीश यादव , रुप नारायण साहू,पुष्पेंद्र साहू ,शैलेंद्र लाहोरिया ,राजीव साहू, मदन सेन, दयाशंकर साहू भावेश पारख,सचिव जसपाल सिंह खनूजा , कोषाध्यक्ष यशवंत साहू , सहसचिव अशोक पटेल रोहित सिंहा,योगेश साहू नगर व्यवस्था समिति के अध्यक्ष नंद यादव, उपाध्यक्ष बृजलाल सार्वा ललीत निर्मलकर, सुरेश साहु, सचिव प्रदीप जैन, कोषाध्यक्ष ज्वाला प्रसाद साहू, सहसचिव दीनदयाल सरपा,श्री राम नव युवक परिषद के अध्यक्ष गजेन्द्र कंचन, सचिव नरेश छेदैहा, सहसचिव भरत साहू,युवा प्रभाग से सौरभ नाग तरुण साहू, मुकेश संचेती निखिल नेताम द्रविड़ नाग खिंवराज बैस रूपेश साहू प्रशांत साहू तरुण साहू शशी पटेल ,राम ध्रुव रौनक खनूजा विनय चौहान नेहाल देवांगन वीरेंद्र मल्होत्रा के अलावा बलजीत छाबड़ा,हृदय नाग,सुनील निर्मलकर,परसादी राम चंद्रवंशी, प्रफुल्ल अमतिया,गेंदलाल पटेल, अश्वनी यादव,खिंजन भोयर,इतवारी राम नेताम,सत्यम सोम,कार्तिक पटेल,उत्तम गौर, रविन्द्र गौर समस्त रामायण मंडलियां, समस्त माता सेवा दल तथा नगरवासी जुटे हुए हैं।



नव आनंद कला मंदिर नगरी के स्थापना वर्ष एवं ऐतिहासिक पल की जानकारी 


नगर व्यवस्था समिति नगरी के पुर्व अध्यक्ष ललित प्रसाद शर्मा ने इस आयोजन के आमंत्रण पत्र पर नगर के ऐतिहासिक पल को सम्माननीय बुजुर्गों से संकलित करते हुए लिखा है कि दंड कारण्य क्षेत्र राम वन गमन पथ पर बसा पौराणिक पारंपरिक नगर नगरी को बस्तर महाराज प्रवीर चंद्र भंजदेव ने बसाया था ।नगरी पूरे भारत में बड़ी जनसंख्या के बावजूद हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई एक साथ रहकर जीवन यापन करते हैं जिसके कारण नगरी की पहचान धर्मनिरपेक्ष नगर के रूप में हुई है। जहां तन मन धन से सहयोग कर नगरी के गांधी चौक राजा बाड़ा परिसर में एक ही स्थान पर मूर्ति की स्थापना करके धार्मिक सहिष्णुता एवं भाईचारा के मिसाल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। स्व.ठाकुर प्रफुल्ल चंद्र सोम, स्व रामदास साहू ,स्व बाला प्रसाद शर्मा ने रायपुर में शिक्षा ग्रहण करते हुए लिली चौक पुरानी बस्ती रायपुर के तर्ज पर नव आनंद कला मंदिर की स्थापना की थी। प्रफुल्ल चन्द्र सोम,रामदास साहू ,बाला प्रसाद शर्मा की 1950 की सोच से 1952 में नगरी नगर में पुरुषोत्तम सोम की अध्यक्षता में शेषमल गोलछा,कंवरलाल नाहटा, डॉक्टर जोसेफ ,कंवरलाल छाजेड़,श्रीवास्तव मैनेजर, मदूभाई गुजराती की टीम ने ऐसा इतिहास रचा कि आज यह आयोजन 73 वर्ष पूर्ण कर लिया। यहां दुर्गोत्सव की प्रथम प्रतिमा नागपुर से सन 1952 में लाई गई।जो आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण 11 दिनों में नगरी पहुंची। जिसका श्रेय ठाकुर प्रफुल्ल चंद्र सोम, दुर्गा सिंह ठाकुर भगवान सिंह ठाकुर, बहादुर सिंह वर्मा, लक्ष्मण सिंह नाग,कुंजल सिंह वर्मा,केसरी मल सोनी, कन्हैया लाल सोनी ,महेंद्र प्रताप सोम एवं ओंकार सिंह वर्मा की 11 सदस्य टीम को जाता है। नवरात्रि के कार्यक्रम स्थल पर मां शीतला, भगवान हनुमान, ठाकुर देव ,माटी महतारी भैरव बाबा को पूरे विधि विधान के साथ नौ दिनों के लिए स्थापित किया जाता है ।पंचमी पूजा के उपरांत ही समय 3:00 बजे से नारियल तोड़ने की परंपरा है ।अष्टमी को महानिशा पूजा मध्य रात्रि के उपरांत आचार्य एवं पुजारी गणों के द्वारा किया जाता है। इसमें रखिया फल को प्रतीकात्मक बली दिया जाता है ।दुर्गा सप्तसती का पाठ अनवरत 18 घंटे पूजा के दौरान किया जाता है ।माता सेवा के दौरान ही उपवास तोड़ने की भी परंपरा है।नवमी के दिन समयशश पुर्वान्ह 11:00 बजे स शाम 6:00 बजे के मध्य हवन कार्यक्रम अनवरत चलता हैं। हवन कुंड 9 भुजा धारी 3 फीट गहराई में होती है। हवन कार्य भव्यता के साथ पूर्ण होता है ।जिसमें 365 दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। दसमीं के दिन सुबह 7:00 बजे से जंवारा विसर्जन,शीतला माता,हनुमान जी भैरव बाबा, ठाकुर देव की विदाई सेवा दल के माध्यम से किया जाता है।यहां नव कन्या भोज का विशेष आयोजन होता है। 




       पूजा में बिनवा छेना का उपयोग

नगरी में मनाए जाने वाली नवरात्रि महोत्सव पर माता रानी की पूजा में बिनवा छेना का उपयोग होता है ।दशांक और धूप की आहुति के लिए बिनवा छेना में आज प्रज्वलित की जाती है ।बिनवा छेना अर्थात प्राकृतिक रूप से बना हुआ कंडा । इसका अर्थ यह भी होता है कि खेत खलिहान के गोबर पड़े पड़े सूख जाते हैं गोबर के इसी सूखे हुए रूप को बिन लिया जाता है। इस कारण इसे बिनवा छेना कहा जाता है ।यह परंपरा 2024 की स्थिति में 73 साल पुरानी है जो आज भी कायम है।


चकमक पत्थर से आग उत्पन्न कर ज्योति प्रज्वलित करने की परम्परा


नगरी में नवरात्रि महोत्सव पर पत्थर से आग उत्पन्न कर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करने की अनोखी परंपरा है ।24 सितंबर 1952 को दिन शनिवार को राशि कन्या को समय संध्या 5:41 बजे प्रथम नगर पुरोहित कामता प्रसाद शर्मा एवं एवं नारायण प्रसाद तिवारी के करकमलों से बोहारराय ग़ौर के चकमक पत्थर से मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की गई।चकमक पत्थर से आग उत्पन्न करने की यह अद्भुत परंपरा वर्षो से चली आ रही है इसके लिए एक विशेष प्रकार का पत्थर जंगल से लाया जाता है इस पत्थर में आज की चिंगारी उत्पन्न होने की उत्तेजक क्षमता पाई जाती है इस पत्थर को चकमक पत्थर कहा जाता है विशेष प्रकार के लोहे से पत्थर पर प्रहार करके चिंगारी निकाली जाती है इसके लिए एक बांस की छोटी सी ढोलकी में सेमर पेड़ की रुई भर कर रखी जाती है ।रुई वाली ढोलकी और पत्थर को एक साथ एक ही हाथ में पकड़ने का तारीका गजब का होता है। ऐसा पकड़ा जाता है कि दूसरे हाथ से पत्थर पर प्रहार करने से निकली चिंगारी रुई पर ही पड़ती है और उसमें आग प्रज्वलित हो जाती है इसी आग से नवरात्रि की मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है इसी आग का उपयोग चूल्हा में भोजन बनाने के लिए उपयोग होता है।

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