गांव में गौरी गौरा जगाने का पुरानी परंपरा आज भी जीवित है... चलिए जानते हैं छतीसगढ में दीपावली क्यों और कैसे मनाते है।

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 गांव में गौरी गौरा जगाने का पुरानी परंपरा आज भी जीवित है...

चलिए जानते हैं छतीसगढ में दीपावली क्यों और कैसे मनाते है।


उत्तम साहू 

धमतरी/नगरी - वैसे तो दीपो का त्यौहार दीपावली जगमगाती दियों के बीच धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजन कर दीपावली का पर्व मनाया जाता है, इस दिन को भगवान श्रीरामचंद्र जी के द्वारा बुराई के प्रतीक रावण का वध कर अयोध्या लौटने के खुशी में पूरे भारत वर्ष में हर्षोल्लास व उत्साह के साथ आतिशबाजी कर मनाया जाता है।



 उमरगांव के सामाजिक कार्यकर्ता अंगेश हिरवानी, देवेंद्र सेन, महेश अग्रवाल, गट्टासिल्ली से राम कुमार सामरथ, बरबांधा से महेश नेताम,नगरी से गोलू मंडावी ने बताया कि इसके अलावा हमारे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में दीपावली मनाने की अपनी लोक परम्परा व लोक रीति रिवाज है। जहा इस दिन को सुरहुति का नाम दिया जाता है, जहां रात्रि में भगवान शिव का गौरा और माता पार्वती की गौरी रूप में मूर्ति बनाकर सुंदर मनमोहक झांकी निकाली जाती हैं,और गाजे बाजे के साथ गांव के गौरा चौक में ले जाकर विराजित किया जाता है। ज्ञात हो कि हमारे ग्रामीण अंचल में गौरी गौरा जगाने का अधिकांश परंपरा का निर्वहन आदिवासी भाईयो के द्वारा किया जाता है, गौरा जगाने के लिए गांव के महिला पुरूष युवक युवती गांव मे निर्मित गौरा चौक में एकत्रित होकर झाखर व बैगा के द्वारा पूजा पाठ करके पारंपरिक गौरा गीतों के माध्यम से बाजा के पारंपरिक धुनों के बीच गौरी गौरा को जगाने के साथ साथ गौरी गौरा को रात्रि विश्राम के लिए सुलाया भी जाता है, इस बीच युवक युवती को देव भी आता है जिससे वे बाजे के धुन में नाचते हुए अपने हाथ पैर को रस्सी से बने साकड़ से मारते हैं। यह क्रम सात दिन दिनों तक रात्रि के प्रथम पहर में चलता है।जिसमे आदिवासी भाईयो की भागीदारी तो रहती है साथ साथ गांव के सभी वर्ग के लोग भी भाग लेते है और गौरा जगाने के अवसर पर लुत्फ उठाते हैं।ग्रामीण अंचल में पहले गौरी गौरा जगाने का सिलसिला एक सप्ताह पहले शुरू हो जाता था।किंतु अब समय का फेर और आधुनिकता का प्रभाव इस परंपरा पर हावी होने लगा है अब मात्र औपचारिक बन कर रहा गया है, क्योंकि पहले लोग उत्साह व जोश के साथ भाग लेते थे किंतु अब उसमे पुरानी जोश व उत्साह दिखाई नहीं देता।




इस परंपरा को आज के आधुनिकयुग में इसे अंधविश्वास का नाम भले ही दे,किंतु पूर्वजों द्वारा परंपरा के रुप में दी गई इस धरोहर को क्रियान्वित कर रहे हैं,जिसमे पूर्ण रूपेण लोक कल्याण व लोक मंगल की भावना छिपी हुई है जो हमारी ग्रामीण जीवन मे एकता का संदेश देता है।

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