जंगल की गोद से निकली ‘सोने’ सी सब्जियाँ, फूटू-बोड़ा का स्वाद,लोगो की यादों से जुड़ा,
वर्ष में सिर्फ एक बार मिलती है कीमतें सुनकर आ जाता है पसीना, फिर भी थालियों में पहला हक़ इन्हीं का
उत्तम साहू
नगरी/ ब्लाक मुख्यालय नगरी की सड़कों पर, विशेषकर बस स्टैंड, बजरंग चौक में रोड किनारे, फूटू और बोड़ा की बिक्री ने जोर पकड़ा है। फुटू 150 से 200 रुपए जुरी और 1000-1500 रुपए किलो तक बिक रहा है, जबकि बोड़ा 600 से 800 रुपए किलो तक के दाम छू चुका है। इसके बावजूद, लोग इन्हें
झोले में भरकर ले जा रहे हैं क्योंकि यह सब्जियाँ केवल साल में एक बार ही मिलती हैं और इनका स्वाद पूरे साल जुबान पर बना रहता है। जो भी एक बार खा लेता है, वो हर साल इंतज़ार करता है। ये सिर्फ सब्जी नहीं, अपनापन है, जो जंगल की मिट्टी से जुड़ा है।
जैसे ही सावन की पहली फुहारें धरती पर गिरती हैं, शहर के कोने-कोने में हरियाली की एक अलग सी चहल-पहल दिखने लगती है। उसी के साथ बाजारों में भी ‘फूटू’ और ‘सरई बोड़ा’ जैसी मौसमी सब्जियों की रौनक लौट आती है। लेकिन इस बार इन स्वादिष्ट जंगली सब्जियों की खुशबू के साथ महंगाई की चुभन भी महसूस हो रही है। इन दिनों नगरी से लेकर रायपुर तक, ये सब्जियाँ लोगों को अपनी ओर खींच रही हैं चाहे कीमतें सुनकर पसीना क्यों न छूट जाए!
दरअसल जंगलों से निकलने वाली ये सब्जियाँ असल में मशरूम की जंगली प्रजातियाँ हैं। खास बात यह है कि इन्हें खेतों में उगाया नहीं जा सकता। साल के पहले 2-3 मानसूनी बारिशों के बाद ये साल के पेड़ों के नीचे जमीन से फूटती हैं। सफेद और काले रंगों में पाई जाने वाली ये सब्जियाँ चिकन-मटन से भी महंगी बिक रही हैं। कई जगह तो इनके दाम 1600 रुपए प्रति किलो तक पहुँच चुके हैं। इन सब्जियों की खूबी यह है कि ये जमीन के नीचे अपने आप उगती हैं बिना किसी खाद, पानी या मानवीय देखरेख के। ये प्रकृति का ऐसा उपहार हैं, जो केवल बारिश की पहली नमी को महसूस कर जन्म लेती हैं।
ऐसे समय में जब हर चीज़ कृत्रिम होती जा रही है, फूटू और बोड़ा आज भी प्रकृति की पवित्रता और स्वाद की सरलता का सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं।