शासन की उपेक्षा से तंग होकर स्वयं सड़क निर्माण में जुटे ग्रामीण, समाजसेवी ने आगे बढ़ाया सहयोग का हाथ

0

 शासन की उपेक्षा से तंग होकर स्वयं सड़क निर्माण में जुटे ग्रामीण, समाजसेवी ने आगे बढ़ाया सहयोग का हाथ



         जगदलपुर, बस्तर (छत्तीसगढ़), 19 अक्टूबर 2025

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित गुड़ियापदर गांव के गोंड आदिवासी अब शासन और प्रशासन की वर्षों पुरानी उपेक्षा से तंग आकर अपने हाल खुद सुधारने निकले हैं। गांव के ग्रामीणों ने सड़क सुविधा के अभाव में उत्पन्न कठिनाइयों से त्रस्त होकर स्वयं कच्ची सड़क निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया है। इस जनसहभागिता के प्रयास ने एक बार फिर साबित किया है कि जब सरकारें चुप रहती हैं, तो जनता खुद अपना रास्ता बनाना जानती है।  


गर्भवती महिला को खटिया में ढोने की घटना बनी चेतावनी

कुछ दिन पहले इसी गांव की एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा के दौरान खटिया को स्ट्रेचर बनाकर कीचड़ और नालों को पार करते हुए करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित डिमरापाल अस्पताल तक ले जाया गया था। यह घटना न केवल ग्रामीणों की मजबूरी को उजागर करती है, बल्कि विकास की बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव की तस्वीर को भी बयान करती है।  


           बुनियादी सुविधाओं से रहित है पूरा गांव

गुड़ियापदर गांव, जो वर्ष 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स एक्ट (CFRA) के तहत वैध घोषित किया गया था, आज भी सड़क, स्वास्थ्य केंद्र, बिजली, पेयजल और परिवहन जैसी न्यूनतम सुविधाओं से वंचित है। लगभग 35 गोंड परिवार वर्ष 2002 से इस क्षेत्र में बसे हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ आज तक गांव तक नहीं पहुंच पाया।  


      स्वयं के श्रम और सहयोग से बनेगी सड़क

सरकार की उदासीनता से निराश ग्रामीणों ने अब सामूहिक श्रमदान के माध्यम से अपने गांव के लिए कच्ची सड़क बनाने का संकल्प लिया है। ग्रामीण सामूहिक सहयोग से पगडंडी की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण का कार्य कर रहे हैं। अगले चरण में वे मुरूम और गिट्टी डालकर सड़क को मजबूत करने की योजना बना रहे हैं।  

ग्रामीणों का कहना है, “एक-एक फावड़ा माटी खुद हम उठाकर भरेंगे, लेकिन अब मदद का इंतजार नहीं करेंगे। सरकार से उम्मीद टूट चुकी है, अब हम अपने बूते गांव तक सड़क बनाएंगे।”  


         समाजसेवी शकील रिजवी ने की अपील

स्थानीय समाजसेवी शकील रिजवी ने गुड़ियापदर के इन ग्रामीणों के आत्मनिर्भरता प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि यह सिर्फ सड़क नहीं, बल्कि उम्मीद की राह है। उन्होंने सामाजिक संगठनों, दानदाताओं और आम नागरिकों से इस कार्य में सहयोग देने की अपील की। रिजवी का कहना है कि यदि दीपावली जैसे शुभ अवसर पर समाज आगे आकर मदद करता है, तो यह सड़क उनके जीवन में सच्चे अर्थों में “प्रकाश का मार्ग” सिद्ध होगी।  

पिछले वर्षों में मलेरिया जैसी बीमारियों के कारण दो बच्चों की मौत हो चुकी है, फिर भी प्रशासन की तरफ से कोई स्थायी कदम नहीं उठाए गए। अब ग्रामीणों ने ठान लिया है कि वे अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए स्वयं विकास की दिशा में कदम बढ़ाएंगे।  


        ग्रामीण स्वाभिमान की मिसाल

गुड़ियापदर के लोगों का यह प्रयास पूरे बस्तर के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गया है। जहां सरकारों की योजनाएं जंगलों तक नहीं पहुंच पातीं, वहां लोगों ने मिलकर सामूहिक शक्ति से रास्ता बनाने का काम शुरू किया है। यह सिर्फ मिट्टी की सड़क नहीं, बल्कि विकास, आत्मसम्मान और उम्मीद की नई राह है।  





Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !