छत्तीसगढ़ महतारी का अपमान : अस्मिता पर सबसे बड़ा आघात
विशेष लेख- संपादक उत्तम साहू
धमतरी/ छत्तीसगढ़, जो अपनी मातृभूमि को “छत्तीसगढ़ महतारी” कह कर पूजता है, आज गहरे आक्रोश और पीड़ा में है। राजधानी रायपुर में तेलीबांधा के विशिष्ट चौक पर लगी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा को असामाजिक तत्वों द्वारा खंडित किया जाना केवल पत्थर तोड़ने की हरकत नहीं, बल्कि यह उस भावना, उस पहचान और उस संस्कृति पर वार है जो हर छत्तीसगढ़िया के दिल में बसती है।
स्थापना दिवस से ठीक पहले इस घटना का घटित होना और भी ज्यादा प्रतीकात्मक है—मानो कोई हमारे स्वाभिमान को चुनौती देना चाहता हो। यह अपमान न केवल एक मूर्ति का है, बल्कि उस मातृशक्ति का भी, जिसकी मर्यादा में छत्तीसगढ़ की आत्मा निवास करती है।
आज सवाल यह नहीं है कि मूर्ति किसने तोड़ी। सवाल यह है कि यह कैसे संभव हुआ कि राजधानी के सबसे प्रमुख चौक पर, जहाँ हर समय सुरक्षा और निगरानी की उम्मीद होती है, वहाँ ऐसी घटना घट सके। यह सरकार और प्रशासन की सजगता पर कठोर प्रश्नचिह्न है।
यह घटना हमें मई 2025 की उस रात की भी याद दिलाती है जब गौरेला में प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी की प्रतिमा को खंडित किया गया था। उस समय भी मामला ठंडे बस्ते में डालने की कोशिशें हुईं, और अब फिर वही असंवेदनशीलता दोहराई जा रही है। यह केवल अपराध नहीं—यह समाज में बढ़ रही नफरत और राजनीति में पनप रही असहिष्णुता का दर्पण है।
छत्तीसगढ़ महतारी केवल एक प्रतीक नहीं हैं, वह हमारी अस्मिता की धुरी हैं। उनके प्रति अपमान, हर बेटे-बेटी के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है। अगर शासन और प्रशासन इन प्रतीकों की रक्षा नहीं कर सकते, तो यह उनकी जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उठाता है।
अब वक्त है कि सरकार न केवल दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे, बल्कि मातृभूमि के सम्मान की पुनर्स्थापना के लिए साहसिक कदम उठाए। महतारी की मूर्ति को गरिमापूर्ण रूप में पुनःस्थापित करना केवल औपचारिकता नहीं, यह छत्तीसगढ़ की आत्मा को फिर से सम्मान देने का कार्य होगा।
जनता अब चुप नहीं रहेगी। क्योंकि जब संस्कृति और अस्मिता पर आघात होता है, तब मूक रहना भी अपराध बन जाता है। छत्तीसगढ़ का हर नागरिक आज अपनी महतारी के सम्मान की रक्षा के लिए एकजुट है—और यही एकता इस भूमि का सबसे बड़ा सामर्थ्य है।

