छतीसगढ के पारंपरिक त्यौहार छेरछेरा पुन्नी नगरी सहित पूरे अंचल में धुमधाम से मनाया गया

 

छतीसगढ के पारंपरिक त्यौहार छेरछेरा पुन्नी नगरी सहित पूरे अंचल में धुमधाम से मनाया गया 




उत्तम साहू 

नगरी/ छत्तीसगढ़ के लोक पारंपरिक त्यौहार में से एक छेरछेरा पुन्नी को नगर में धूमधाम से मनाया गया। सुबह से ही छोटे बच्चे टोली बनाकर छेरछेरा मांगते देखे गए,

बता दें कि छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से फसल काटकर एवं उसकी मिंजाई कर धान को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते है. यह पर्व दान देने का पर्व है. किसान अपने खेतों में साल भर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई धन को दान देकर छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं. माना जाता है कि दान देना महा पुण्य का कार्य होता है. किसान इसी मान्यता के साथ अपने मेहनत से उपजाई हुई धान का दान देकर महान पुण्य का भागीदारी निभाने हेतु छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं. इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कह कर अन्न का दान मांगते और सभी घरों में अपने कोठी अर्थात अन्न भंडार से निकालकर सभी को अन्नदान करते हैं. गांव के बच्चे टोली बनाकर घर-घर छेरछेरा मांगने जाते हैं.

जे सभी एक स्वर में दान लेते समय बच्चे कहते हैं ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ और जब तक घर की महिलायें अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे. और छेरछेरा के दिन उदार मन से धान का दान करते हैं इस त्यौहार को फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। नगर पंचायत नगरी में बच्चों की एक टोली ने छत्तीसगढ़ी वेशभूषा धारण कर घरों घर छेरछेरा गीत नृत्य प्रस्तुत करके छेरछेरा तिहार को यादगार बना दिया,



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