साहनीखार के ग्रामीणों ने क्षेत्रीय विधायक अंबिका मरकाम से की सड़क मरम्मत कराने की मांग

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 साहनीखार के ग्रामीणों ने क्षेत्रीय विधायक अंबिका मरकाम से की सड़क मरम्मत कराने की मांग 



उत्तम साहू 

नगरी-सिहावा, धमतरी जिले के आदिवासी विकासखंड के ग्राम ग्राम पंचायत लटियारा के आश्रित गांव साहनीखार के सैकड़ों ग्रामीणों ने रविवार को क्षेत्रीय विधायक अंबिका मरकाम के निवास पर पहुंचकर अपने क्षेत्र की बदहाल सड़कों को जल्द दुरुस्त करवाने की गुहार लगाई। ग्रामीणों ने कहा कि “हर दिन जान जोखिम में डालकर आवागमन करना पड़ता है, लेकिन शासन-प्रशासन और लोक निर्माण विभाग पूरी तरह मौन है।”


साहनीखार समेत आसपास के गांवों को जोड़ने वाली मुख्य सड़क जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। बरसात के दिनों में इस रास्ते पर कीचड़ और पानी जमा हो जाता है, जिससे स्कूली बच्चों, किसानों और मरीजों सहित सभी ग्रामीणों को भारी परेशानी होती है।  


ग्रामीणों के अनुसार, लोक निर्माण विभाग एवं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क विभाग द्वारा वर्षों से सड़क मरम्मत की कोई पहल नहीं की गई। विभागीय उदासीनता के कारण अब इस सड़क पर वाहन चलाना तो दूर, पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे।

       प्रतिनिधिमंडल ने विधायक को दिया ज्ञापन

ग्रामीणों के प्रतिनिधिमंडल में सरपंच श्री रुपेश कुमार ध्रुव, पोखन दास पटेल, लीलम्बर सिंह नेताम, मदन लाल मंडावी, पतीन्द्र नेताम, सेवन दाश, राम गुलाल नेताम, पंच श्रीमती रुखामनी नागवंशी सहित समस्त पंच गण शामिल रहे। प्रतिनिधिमंडल ने सेमरा मुख्य मार्ग से साहनीखार तक पक्की सड़क निर्माण की मांग की।

             आंदोलन की चेतावनी

ग्रामीणों ने ज्ञापन सौंपते हुए स्पष्ट कहा कि यदि शीघ्र सड़क निर्माण का कार्य शुरू नहीं किया गया, तो वे आंदोलन को बाध्य होंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अब केवल आश्वासन से काम नहीं चलेगा, प्रशासन को पक्की कार्रवाई करनी होगी।  

स्थानीय नागरिकों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपील की कि वे स्थिति की गंभीरता को समझें और पूरे नगरी-सिहावा क्षेत्र में सड़कों की तत्काल मरम्मत और निर्माण प्रक्रिया प्रारंभ करें, ताकि ग्रामीणों को राहत मिल सके।


क्षेत्र की जर्जर सड़कें न सिर्फ आवागमन को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि ग्रामीणों की सुरक्षा और विकास में भी बाधक बन रही हैं। अब देखना ये है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि ग्रामीणों की मांगों को कब तक सुनते हैं और कब तक इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जाती है।


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