आउटसोर्स के भरोसे सरकार; 1 लाख कर्मियों को न वेतन, न सुविधाएं : गोपाल प्रसाद साहू
उत्तम साहू
रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल प्रसाद साहू ने कहा कि संविदा और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के बाद अब लगभग सभी सरकारी विभागों का संचालन आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे हो रहा है।
बिजली कंपनियां, नगरीय निकाय, आबकारी, श्रम विभाग, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, स्कूल–छात्रावास समेत लगभग हर विभाग में आउटसोर्सिंग व्यवस्था बढ़ती जा रही है। भर्ती प्रक्रिया, सेवा शर्तें और वेतन तय करने को लेकर बढ़ती मनमानी से कर्मचारियों में असंतोष लगातार बढ़ रहा है। इन्हीं मुद्दों को लेकर कर्मचारी बार-बार आंदोलन कर रहे हैं।
1 लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मी—न पीएफ, न ग्रेच्युटी, न न्यूनतम वेतन
फेडरेशन ने बताया कि क्लास-3 और क्लास-4 मिलाकर 1 लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी प्रदेश के विभिन्न विभागों में 100 से अधिक एजेंसियों के माध्यम से कार्यरत हैं।
इन कर्मचारियों को न पीएफ, न ग्रेच्युटी, न अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं। फेडरेशन का आरोप है कि इन्हें मिलने वाला वेतन न्यूनतम मजदूरी से भी कम है, जिससे स्पष्ट है कि प्रदेश के युवाओं का घोर शोषण हो रहा है।
276 करोड़ का आर्थिक नुकसान—सरकार पर अतिरिक्त बोझ
फेडरेशन के अनुसार, सरकार को हर वर्ष आउटसोर्सिंग व्यवस्था के कारण भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
उदाहरण स्वरूप—
- प्रति कर्मचारी औसत मासिक वेतन : 10,000
- 1 लाख कर्मचारियों पर वार्षिक खर्च : 1200 करोड़
- इस राशि पर 18% जीएसटी और औसत 5% एजेंसी शुल्क जोड़ने पर
सरकार को लगभग 276 करोड़ अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है।
श्रम कानूनों का उल्लंघन—श्रम न्यायालय व्यवस्था सिर्फ दिखावा
फेडरेशन ने कहा कि मजदूरी संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा व स्वास्थ्य संहिता 2020 सहित कई श्रम कानून मौजूद हैं, परंतु सरकार इनका पालन नहीं कर रही।
श्रम न्यायालय की कार्यवाही को उन्होंने “सिर्फ दिखावा” बताया।
सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले—लंबी सेवा वाले कर्मचारियों को सुरक्षा
साहू ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जग्गो बनाम भारत संघ (दिसंबर 2024) और श्रीपाल बनाम नगर निगम गाजियाबाद (फरवरी 2025) सहित कई मामलों में स्पष्ट किया है कि उमा देवी (2006) के निर्णय का उपयोग लंबे समय से सेवा दे रहे कर्मचारियों के नियमितीकरण से इनकार के लिए नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि उमा देवी निर्णय का उद्देश्य “पिछले दरवाज़े से अवैध नियुक्ति” रोकना था, न कि वर्षों से आवश्यक सेवाएं दे रहे अनियमित कर्मचारियों को स्थायीकरण से वंचित करना।
फेडरेशन की प्रमुख मांगें
फेडरेशन लंबे समय से आंदोलन, आवेदन और निवेदनों के माध्यम से सरकार का ध्यान आकर्षित करता आ रहा है। प्रमुख मांगें—
- अनियमित कर्मचारियों का नियमितीकरण/स्थायीकरण
- निकाले गए कर्मचारियों की बहाली
- न्यून मानदेय कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन
- अंशकालीन कर्मचारियों को पूर्णकालीन किया जाए
- आउटसोर्सिंग/ठेका/सेवा प्रदाता/समूह समिति आधारित नियोजन प्रणाली बंद की जाए
‘मोदी की गारंटी’ पत्र में वादा, पर कमेटी गठन में विरोधाभास
फेडरेशन ने कहा कि “मोदी की गारंटी 2023” के वचनबद्ध सुशासन के बिंदु क्रमांक 2 में राज्य में अनियमित कर्मचारियों हेतु समीक्षा प्रक्रिया के लिए एक कमेटी गठित करने का उल्लेख है।
परंतु जारी कमेटी आदेश में अनियमित कर्मचारी संगठनों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं, जिससे सरकार की नीयत पर सवाल पैदा होते हैं।
वर्तमान स्थिति—‘मध्यकालीन बंधुआ मजदूरों से भी बदतर’
साहू के अनुसार, पिछले 20–25 वर्षों से अनियमित कर्मी जनहितकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी कोई सुध नहीं ले रही।
पारिवारिक जिम्मेदारियों, आर्थिक असुरक्षा और प्रशासनिक दबाव के बीच उनकी स्थिति “मध्यकालीन बंधुआ मजदूरों से भी बदतर” हो चुकी है।
फेडरेशन ने चेतावनी दी कि भाजपा सरकार द्वारा मांगों की अनदेखी से कर्मचारी आहत और आक्रोशित हैं।
दिसंबर माह में विशाल आंदोलन आयोजित किया जाएगा।


