नगरी में गूँजा बलिदान का स्वर : वीर नारायण सिंह की 168 वीं शहादत पर कृतज्ञता का नमन
उत्तम साहू नगरी, 10 दिसंबर
छत्तीसगढ़ की धरती आज एक बार फिर इतिहास की उस अमर पंक्ति से आलोकित हुई, जहाँ 1857 की जनक्रांति के अग्रदूत वीर नारायण सिंह ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर स्वतंत्रता की ज्योति प्रज्वलित की थी। उनकी 168वीं शहादत दिवस पर नगरी नगर भावनाओं, कृतज्ञता और गर्व से साक्षात संघर्ष–गाथा बन गया।
श्रद्धांजलि का सामूहिक संकल्प
नगर के नागरिक, सर्व समाज के प्रतिनिधि, सरपंच संघ के अध्यक्ष श्री उमेश देव सहित ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जुटे। वीर नारायण सिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर नगरवासियों ने उस शहीद के प्रति आभार व्यक्त किया, जिसने अकालग्रस्त जनता की भूख को अपना लक्ष्य और अत्याचारी शासन को चुनौती बनाया था।
विधायक अंबिका मरकाम का उद्बोधन : “वीरता जो प्रदेश की आत्मा बनी”
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित विधायक श्रीमती अंबिका मरकाम ने कहा कि वीर नारायण सिंह का साहस छत्तीसगढ़ की आत्मा में बसता है। उन्होंने स्मरण कराया कि 1857 के संग्राम में सोनाखान के इस जमींदार ने अंग्रेजी अत्याचार का सामना न केवल तलवार से किया, बल्कि जनता की पीड़ा को संघर्ष का आधार बनाया। विधायक ने यह भी बताया कि सरकार और समाज मिलकर इस महान क्रांतिवीर के इतिहास को नई पीढ़ियों तक पहुँचाने के प्रयासों को गति दे रहे हैं।
अकाल, अन्याय और प्रतिरोध की अमर कथा
जब अंग्रेजों ने अनाज के दाम बढ़ाकर गरीबों को भूख के हवाले कर दिया, तब वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजी गोदाम का अनाज जनता में बाँटकर उस प्रतिरोध की शुरुआत की, जिसे आगे चलकर छत्तीसगढ़ की क्रांतिधारा ने नई दिशा दी। इस साहसिक कदम ने उन्हें गरीबों का संरक्षक और अत्याचार के खिलाफ पहली आवाज बना दिया।
बलिदान जिसने जगाई चेतना
10 दिसंबर 1857 को रायपुर में उन्हें फाँसी दे दी गई, परंतु मृत्यु ने उनका प्रभाव नहीं रोका—बल्कि पूरा प्रदेश स्वतंत्रता के संकल्प से भर उठा। आज उसी चेतना को पुनर्जीवित करते हुए युवाओं और सामाजिक संगठनों ने उनके जीवन और संघर्ष पर वक्तव्य प्रस्तुत किए।
आदर्शों को जीवित रखने का प्रण
कार्यक्रम का समापन नगर के सामूहिक संकल्प के साथ हुआ—कि वीर नारायण सिंह के आदर्शों, साहस, जनसेवा और राष्ट्रनिष्ठा को सदैव हृदय में संजोकर आगे बढ़ाया जाएगा।
नगरी में हुआ यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि नहीं था, बल्कि इतिहास के उस उजाले को पुनः महसूस करने का अवसर था जिसने छत्तीसगढ़ को स्वाभिमान का आधार दिया।


